यादो की ज़ंजीरो मैं ज़कड़ ले मुझे,
मेरी तन्हाई ये आवाज़ देती हैं|
कोई बेहताशा मोहब्बत करता हैं तुझसे,
इस दिल की आरजू ये पैगाम देती हैं ||
इस तन्हाई की ज़िन्दगी को हम छोड़ देंगे ए दर्द-ए-जिगर,
ये तन्हाई सिर्फ दर्द का अंजाम देती हैं |
तेरी यादो मैं ए-जाने-तमन्ना डूब जायेंगे आकंठ तक ,
ये यादे ही हमे मोक्ष का मुकाम देती हैं ||
Blog of Manvendra Singh Tanwar---'jigyasu'. Regular posts will be made on my written quotes and poems and literary views and many more....
Saturday, September 11, 2010
Wednesday, September 8, 2010
bhawarth
अर्थात समय के दबाव के समक्ष मैं पिसता जा रहा हूँ, समय का पहिया मुझे स्वयं के तले रौंदता जा रहा हैं |जीवन मैं आये विभिन्न तकलीफों,दर्दो ने मुझे अपने आग़ोश मैं ले लिया हैं जिस प्रकार जल का ठोस रूप जब अपने चरम पर होता हैं तो वह मौजूद प्रत्येक वस्तु को अपनी जकडन में फंसा लेता हैं ,समय भी मुझे उसी भांति सम्मोहित करता जा रहा हैं |समय सूत्रधार हैं अर्थात उस सूत्र अथवा डोरी को थामे हुए हैं जिसके दुसरे बिंदु पर में एक कठपुतली की भांति लटका हुआ हूँ व मैं उसके हस्तो द्वारा नियंत्रित उस कठपुतली के सामान हूँ जिसे वह जब चाहे अपने अनुसार मोड़ देता हैं,जिस प्रकार समुद्र में तूफान के दौरान उठा भंवर अपने अन्दर समायी हर वस्तु को अपने अनुसार घुमा देता हैं ,उसे अपना गुलाम बना देता हैं ठीक उसी प्रकार मैं भी समय के भंवर रूपी जाल में फंस गया हूँ एवं अत्यंत ही निस्सहाय महसूस कर रहा हूँ ||
Monday, September 6, 2010
samay
"दबिश-ए-समय में हम दब कर रह गए,
दर्द भरी झकडन में जम कर रह गए|
वो सूत्रधार और महज कठपुतलिया हैं हम,
उसके गतिशील भंवर में हम रम कर रह गए ||"
दर्द भरी झकडन में जम कर रह गए|
वो सूत्रधार और महज कठपुतलिया हैं हम,
उसके गतिशील भंवर में हम रम कर रह गए ||"
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